मैंने कल देर रात
एक कवि को देखा
सहसा विचलित
एक बौने क़द का व्यक्ति
अजीब पसोपेश में
धरती को टटोलता
और उसकी थकी छाया
अनर्गल शब्दों को निगलती
एक अदॄश्य आकाश पर लपकती हुई
एक कवि को देखा
सहसा विचलित
एक बौने क़द का व्यक्ति
अजीब पसोपेश में
धरती को टटोलता
और उसकी थकी छाया
अनर्गल शब्दों को निगलती
एक अदॄश्य आकाश पर लपकती हुई