Friday, 15 January 2010

एक टूटी हुई कविता

शाम कुछ शब्द
एक लापता कविता के
पगडँडी से निकलकर
दबे पाँव

कवि के पास

रात के किनारे बैठा
पुराने विस्मित चमड़े में
घिरा अर्द्ध-विरामी व्यक्ति
अचरज के कटघरे से

क्षीण हँसी

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