Saturday, 19 May 2012

कवि

मैंने कल देर रात
एक कवि को देखा

सहसा विचलित
एक बौने क़द का व्यक्ति
अजीब पसोपेश में
धरती को टटोलता

और उसकी थकी छाया
अनर्गल शब्दों को निगलती
एक अदॄश्य आकाश पर लपकती हुई